गंगाजल 250 डॉलर में क्यों (खांसी की दवा)

 💐#गंगाजल

#खराब_क्यों_नहीं_होता ?💐


अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 

250 डालर में क्यों मिलता है।


सर्दी के मौसम में कई बार खांसी

हो जाती है। 


तो जब डॉक्टर से खांसी ठीक नही

हुई तो किसी ने बताया कि डाक्टर

से खांसी ठीक नहीं होती तब

गंगाजल पिलाना चाहिए।


गंगाजल तो मरते हुए व्यक्ति के

मुंह में डाला जाता है,हमने तो

ऐसा सुना है ;

तो डॉक्टर साहिब बोले- नहीं !

कई रोगों का भी इलाज है।  


दिन में तीन बार दो-दो चम्मच

गंगाजल पिया और तीन दिन में

खांसी ठीक हो गई। 


यह अनुभव है,हम इसे गंगाजल

का चमत्कार नहीं मानते,उसके

औषधीय गुणों का प्रमाण मानते हैं।


कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट

अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन

करते ही थे,मेहमानों को भी गंगा जल

पिलाते थे।


इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज

जब ship से कलकत्ता से वापस

इंग्लैंड जाते थे,तो पीने के लिए

जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे,

क्योंकि वह सड़ता नहीं था। 


इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी

अपने देश से लाते थे वह रास्ते

में ही सड़ जाता था।

(उंस काल में इंग्लैंड से आवागमन

केवल जलमार्ग से होता था जिसमें

महीनों लग जाते थे।)


करीब सवा सौ साल पहले आगरा में

तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने

वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था

कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी

में डालने पर कुछ ही देर में मर गया।


दिलचस्प ये है कि इस समय

वैज्ञानिक भी पाते हैं कि गंगा

में बैक्टीरिया को मारने की

गजब की क्षमता है।


लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल

रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई

के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर

नौटियाल ने एक अनुसंधान में

प्रमाणित किया है कि गंगा के

पानी में बीमारी पैदा करने वाले

#ई_कोलाई बैक्टीरिया को मारने

की क्षमता बरकरार है।


डॉ नौटियाल का इस विषय में कहना

है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री

और हिमालय से आती है। 


गंगा जब हिमालय से आती है

तो कई तरह की मिट्टी,कई तरह

के खनिज,कई तरह की जड़ी

बूटियों से मिलती मिलाती है। 


कुल मिलाकर कुछ ऐसा

मिश्रण बनता है-जिसे हम

अभी तक नहीं समझ पाए हैं।


डॉक्टर नौटियाल ने परीक्षण

के लिए तीन तरह का गंगा

जल लिया था।


उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल

में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला।


नौटियाल ने पाया कि ताजे

गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन

दिन जीवित रहा,आठ दिन

पुराने पानी में एक हफ्ते और

सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन। 


यानी तीनों तरह के गंगा जल में

ई कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं

रह पाया।


वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के

पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले

बैक्टीरियोफाज वायरस होते हैं।


ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते

ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को

मारने के बाद फिर छिप जाते हैं।


मगर सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात

की पहचान करना है कि गंगा के पानी

में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत

क्षमता कहाँ से आती है ?


दूसरी ओर एक लंबे अरसे से गंगा पर

शोध करने वाले आईआईटी रुड़की में

पर्यावरण विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर

देवेंद्र स्वरुप भार्गव का कहना है कि

गंगा को साफ रखने वाला यह तत्व

गंगा की तलहटी में ही सब जगह

मौजूद है। 


डाक्टर भार्गव कहते हैं कि गंगा के

पानी में वातावरण से आक्सीजन

सोखने की अद्भुत क्षमता है। 


भार्गव का कहना है कि दूसरी नदियों

के मुकाबले गंगा में सड़ने वाली गंदगी

को हजम करने की क्षमता 15 से 20

गुना ज्यादा है।


गंगा माता इसलिए है कि गंगाजल

अमृत है,इसलिए उसमें मुर्दे,या शव

की राख और अस्थियां विसर्जित

नहीं करनी चाहिए,क्योंकि -

#मोक्ष कर्मो के आधार पर

मिलता है।

 

भगवान इतना अन्यायकारी व

अत्याचारी नहीं हो सकता कि

किसी लालच या कर्म-कांड से

कोई गुनाह माफ कर देगा। 


*जैसी करनी वैसी भरनी!*


जब तक अंग्रेज किसी बात

को प्रमाणित नहीं करते तब

तक भारतीय लोग सत्य नहीं

मानते।


भारतीय लोग हमारे सनातन

ग्रन्थों में लिखी किसी भी बात

को तब तक सत्य नहीं मानेंगे

जब तक कि कोई विदेशी

वैज्ञानिक या विदेशी संस्था

उस बात की सत्यता की पुष्टि

ना कर दे। 


इसलिए इस आलेख के वैज्ञानिकों के 

वक्तव्य BBC बीबीसी हिन्दी सेवा से 

साभार लिया गये हैं...


हर हर गंगे🙏

हर हर महादेव🙏

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